–HPS TOMAR
सन 1991 में अक्टूबर में पहली बार प्रत्यक्ष संपर्क में आया था ओम प्रकाश जी के। पिताजी और धर्मेंद्र भइया बहुत पहले से ही इनके सीधे संपर्क में थे। बहुतेरे संस्मरण हैं उनके सानिध्य के। पर, सब हृदय को छूने वाले हैं।
कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री रहते हुए भी अगर किसी का अपॉइंटमेंट लेना होता था तो वो ओम प्रकाश जी ही हुआ करते थे। एक बार मुझे उन्होंने भारती भवन पर रोका और कहा “चलो, मुझे चारबाग स्टेशन छोड़ आओ, ट्रेन है।” मैंने अपना वाहन निकाला तो बोले कि “नहीं, मेरा वाहन चलेगा।” यह कह के उन्होंने अपना बजाज स्कूटर निकाला और बोले,”पीछे बैठिये, मैं चलाऊंगा।” पीछे एक तरफ के इंजन वाले बजाज स्कूटर में बैलेंस की संवेदनशीलता को देखते हुए मैंने फिर कहा कि मैं चला लूंगा। इतना सुनते ही बोले कि यह स्कूटर मेरा ही अभ्यस्त है और मैं इस स्कूटर का। फिर किक मार के चढ़ लिए। पीछे मैं बैठ लिया। रास्ते में चुपचाप रहा। क्योंकि उनके समक्ष बड़े बड़े भी शांत ही रहते थे। पर, लगा कि स्कूटर में कुछ गड़बड़ है। पर, चुप रहने में ही भलाई समझी। स्टेशन पहुंच के मुझे चाभी थमाई और बोले,”ट्रेन छूटने के वक्त है, मैं अंदर जा रहा हूँ।” फिर, मुस्कुरा के बोले कि स्कूटर का क्लच वायर ढीला है। इसे कसवा के तब जाना वापस। और ये 25/- लो।”
मैंने पैसे लेने से मना किया तो मेरे मनोभाव को पढ़ के बोले कि बच जाएं तो शम्भू जी से कोई साहित्य ले लेना। फिर, वो अपने कंधे पे अपना चिरपरिचित काही रंग का भारी भरकम झोला ले के छोटी लाइन के प्लेटफॉर्म में चले गये। सहसा लगा कि समय कम था। वाहन ठीक न था इसीलिए उन्होंने मुझे खतरा मोल न लेने दिया।
एक बात और थी उनमें, जो आज दुर्लभ सी हो गयी। क्षेत्र प्रचारक थे और संयोग से बसपा के साथ भाजपा की मिलीजुली सरकार थी। धर्मेंद्र भाईसाहब के श्रम विभाग के तत्कालीन मंत्री उस समय धनेंद्र बनने की जुगत में रात दिन एक किये थे। मंत्री जी भाजपा के होने के बावजूद आदत से लाचार थे। जैसे ही ओम प्रकाश जी को मालूम पड़ा। उन्होंने फ़ोन लगाया मंत्री को। मंत्री जी केरल गए थे। फ़ोन उठते ही उन्हें ऐसी डांट पड़ी कि न केवल वो मंत्रीजी केरल से लौट के सबसे पहले भइया का काम किये बल्कि प्रमाण के तौर पर वह बिन बुलाए भी क्षमा याचना के लिए ओम प्रकाश जी के सामने प्रगट हुए। जब वह प्रगट हुए तो उस समय सरकार के कई मंत्री इसलिए तलब हुए पड़े थे, जिन्होंने संघ स्वयंसेवको के काम में हीला हवाली की थी। यह ओम प्रकाश जी ही थे, जो स्वयंसेवकों के लिए लगने वाले अद्वितीय प्रचारक थे।
2007 में एक समय ऐसा आया कि जब अर्चना दीदी ने गायों की रक्षा में हाईकोर्ट में रिट दाखिल की। तो जैसे ही उन्हें जानकारी मिली, दीदी को रिट की प्रति के साथ बुलवा भेजा। और तुरंत ही कानूनविद व तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी से बात कर उसका अध्ययन करने को कहा। ओम प्रकाश जी की चिंता यह थी कि यह गायों की रक्षा का मामला है। उसमें जीत होनी ही चाहिए।
इसके कुछ दिनों बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के बहुत बड़े वकील वीरेंद्र सिंह चौधरी को लखनऊ अपने किसी काम से आना था। उन्होंने इसी केस में अर्चना दीदी को एक बार फिर भारती भवन बुलाया और वीरेंद्र जी को भी। और, वीरेंद्र जी से इस केस में मार्ग दर्शन करने को कहा।
बहुत कम लोग जानते हैं कि इस प्रदेश में राज्य गो सेवा आयोग के सृजन में उन्हीं का विचार था। गायों के प्रति भावना जगाने वाले साहित्य और नियम कानून के प्रति निरंतर चिंतित रहने वाले ओम प्रकाश जी की कमी बहुत खलेगी।
और भी बहुत सी घटनाओं को स्मृतियों में सहेज के रखा है मैंने। जो केवल स्वयं के लिए है।
आप एक युग थे, जो आज समाप्त हो गया।आप गोलोक ही जायेंगे। यह विश्वास है।हरि ॐ शांति।
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